Thursday 20 January 2011

बर्तन गंगा नहाने जाते है,..


नहाना हम सभी का रोज़ का काम है। लेकिन हम सब रोज़ नहाए ये जरूरी भी नहीं।सर्दियो में अक्सर लोग नही नहाते है। लेकिन ज्यादातर हम सभी दिन की शुरूआत नहाधोकर ही करते है। बोर मत होइए यह लेक्चर हमारे आपके नहाने पर नही है बल्कि यहां तो एक विशेष किस्म का नहाना है वो भी पतितपावनी गंगा में।यहां साधु संतो के स्नान की बात भी नही हो रही है जो माघ में गंगा नहाते है।यहां तो बर्तन नहा रहे है,जी हॉ बर्तन (युटेन्सिल)। क्या बकवास बात है एक पल को मुझे भी यही लगा लेकिन जब इस पूरे जुमले की संदर्भ सहित व्याख्या पता लगी तो यह सोचने पर मजबूर हो गई कि क्या वाकई बर्तन नहाते है? वो भी बाथरुम,सिंक या गुसलखाने मे नहीं गंगा मे डुबकी लगा लगा कर। इस लेख का शीर्षक भी यही है- बर्तन गंगा नहाने जाते है।प्रेजेन्ट इंडैफिनिट मे लिखा गया वाक्य और कहा गया दर्शन शास्त्र प्रवक्ता बालकृष्ण अग्निहोत्री के श्रीमुख से पत्नी मिथिलेष को। पढ़ते रहिए बर्तनों के नहाने का रहस्य बस खुलने ही वाला है।
 मिथिलेश आंटी हमारे पड़ोस मे रहती है। खूबसूरत दो बच्चों की मॉ,कुशल गृहणी और पेशे से अंग्रेजी की प्रवक्ता।लेकिन ४२ की उम्र मे एक बेटे को जन्म देने के बाद से ही हड्डियों की बीमारी हो गई जिसके चलते हाथो और पैरों की उंगलिया टेढ़ी हो गई। बावजूद इसके काम की चुस्ती फुर्ती मे कोई फर्क नही पड़ा। सर्दियों मे हालत कुछ खराब हो जाती थी।शरीर अकड़ जाता था,तब वो मेरे घर धूप सेकने आती थी। खूब बाते करती इधर उधर की,अंग्रेजी की,शेक्सपियर,मिल्टन की, न्यू मॉ़र्डन एज की और आखिर मे अपनी शादी की और आज भी गुलाबी हो जाती है।
 बालकृष्ण जी शाम को कॉलेज से आते चाय पीकर घर के बाहर ही कॉफी हाउस सा मजमा लगा देते। खूब तर्क करते मोहल्ले भर को समझाते बतियाते और ज्ञान बांटते बांटते रात के ११ बजा देतें। आंटी परेशान अग्निहोत्री जी खा ले तब वह बर्तन धोए।ऐसा नही है कि बाई नही हैं। बाई है लेकिन वह सुबह के बर्तन धोती है। करते कराते बालकृष्ण जी सा़ढ़े ग्यारह तक खाने की मेज पर आते। उसके बाद आंटी सारे बर्तन साफ करके सोती। सर्दियों की रातों में १२ बजे बर्तन धोकर सोना वाकई बड़ी बात है एक ऐसी औरत के लिए जिसकी हड्डिया ठंड में ऐठ जाती है।
 एक दिन सुबह आंटी अपने हाथों की मालिश कर रही थी। मैंने पूछ लिया जब बाई है तो आप क्यो परेशान होती है? कुछ सोचकर वह बोली शादी की पहली रात तुम्हारे अंकल ने मुझसे तीन बाते मानने के लिए कहीं। पहली-मेरे कामों मे कोई हस्तछेप मत करना। दूसरा- मेरे माता पिता की बात मानना और तीसरा रात में बर्तन जूठे मत छोड़ना।
तीसरे काम पर अचंभा हुआ कि यह कैसी अटपटी अपेछा मैने पूछा तब जवाब मिला कोई सवाल नही। फिर भी रहा ना गया मुझसे मैमे कई दफा पूछा तब झुंझलाकर बोले - बर्तन गंगा नहाने जाते है, पिता जी ने मॉ से यही कहा था और अब मैं तुमसे कह रहा हूं। मेरा दिमाग सन्न और मन सन्निपात में। यह क्या तर्क है बर्तन गंगा नहाने जाते है इसलिए इन्हे जूठा ना छोड़ा जाए। साफ करके ही रखों। लेकिन एक पल को लगा कि गंगा तो पतितपावनी है वह तो पापों को धो डालती है। 
 मेरा तो दिमाग झनझना गया कि इस कुतर्क के पीछे तर्क क्या दूं कि आखिर क्यों बर्तन आधी रात गंगा नहाने जाते है।पता लगे तो मुझे जरूर बताए।

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