Sunday 30 October 2011

परीक्षा का एक प्रश्न

एक परीक्षा देने गयी,पहला ही प्रश्न था २ जी स्पेक्ट्रुम. पढ़ते ही लगा अब लो इतने दिनों बाद इस पर क्या लिखू ,खैर सोचा इसको आखिर में करती हूँ .सारे प्रश्न हल करने के बाद २ जी स्पेक्ट्रुम - कुछ अलग लिखना चाह रही थी,सोचते सोचते कलम सरपट दौडाई जो दिमाग में आया वह आपके लिए दोबारा से लिख रहीं हूँ ,गौर करे  -  घपलो घोटालो और भ्रष्टाचार की फेहरिस्त में अब तक का सबसे बड़ा घोटाला ( २ जी स्पेक्ट्रुम ) बड़ी हस्तियों, नेता ,उद्योगपति, मीडियाकर्मियों इन सबके सगे सम्बन्धियों  के साथ साथ एक बहुत बड़ी धनराशी २५० करोड़  का शामिल होना ही इस घोटाले को अब  तक का सबसे वृहत्तम घोटाला साबित  करता है. . घोटाले के मुख्य अभियुक्त  संचार मंत्री ए. राजा सलाखों के पीछे  सजा काट रहे है.अन्य अभियुक्त भी गाहे बगाहे पुलिस स्टेशन, कोर्ट के चक्कर लगा रहे हैं .
   यह घोटाला जितना बड़ा उसे करने की अवधि उतनी ही छोटी मात्र आधा घंटे . आधा घंटे और २५० करोड़ हज़म. संचार भवन की सातवी मंजिल में दोपहर के २ से २.३०के बीच गुपचुप ढिंढोरा पीटकर २जी स्पेक्ट्रुमका आवंटन कर दिया गया. इस पूरी प्रक्रिया में प्रयुक्त नीति पहले आओ पहले पाओ थी. टाटा,अम्बानी ,गोयनका, और भी बड़े बड़े नाम अपने आवंटन पाकर खुश. लेकिन , किसी न किसी को तो शोर मचाना ही था . आखिर मामला सूचना और संचार का था . मीडिया सामने लाया कैग की औडिट रिपोर्ट कुछ सुबूतो के साथ . मीडिया के दामन पर भी दाग लगा जब नामचीन मीडियाकर्मियों के नाम नीरा राडिया के साथ जुड़े .कुछ मीडिया समूहों ने इस घोटाले से जुड़े अपने लोगो को बर्खास्त किया और किसी ने छवि निर्माण (यू नो ईमेज बिल्डिंग ) का प्रयास किया. याद करिए फिल्म "नो वन किल्ड जेसिका ". इस खुलासे से किसी कीबरसो की  साख में बट्टा लगा (टाटा) और किसी की साख निर्माण का प्रयास किया गया( बरखा दत्ता) . तो २जी घोटाले का लब्बोलुआब यह है की २५० करोड़ के दाग फिल्मे बनाकर मिटाने की कोशिश की जाती है.अभी की खबर यह है की बाकि सारे अभियुक्त जेल में है और सजा से बचने के जुगाड़ जारी है .


Monday 29 August 2011

कि हारी हुई सी ही सही, लड़ाइयाँ तो हैं!

आज आकाशवाणी के लिए JNU  से निकलना चाहाँ तो ऑटो नहीं मिला.... काफी देर का इन्तजार, बार बार गोदावरी बस स्टैंण्ड के नाम पढनें के अलावा कोई विकल्प भी नहीं दे रहा था ...खैंर इन्तजार को भी चैंन कहाँ जल्द ही खत्म हुआ ऑटो तय हुआ ..मीटर के डिजीटल अंको ने तय करती दूरी का खाका खीचना शुरू कर दिया.... बरसात की गर्मी और वो ऑटों ... दिल्ली को ऑटो के पर्दे से देखना चाहा तो दिल्ली मुझें ठहरे शहर में भागते हुए लोगों कि अन्धी दौड़ का शहर नजर आया (ये मेरा भ्रम भी हो सकता है क्यों कि फिल्मों मे दिल्ली का अपना बखान है).आपकी राय भी दिल्ली के बारे में मुझसे इतर हो सकती है.


ऑटों से बाहर की दिल्ली 

 
बस यूँ ही सफर चलता रहा तभी ऑटो वाले ने मुझ से 5 मिनट का समय माँगा ताकि वो अपनी गाड़ी के लिए ईधन ले सके..मेरे पास भी उसकी इस माँग को स्वीकार न करने की कोई वजह नजर नहीं आई..क्योंकि अगर न मानता तो शायद ऑटो बढता ही नहीं ..खैर ऑटो की लम्बी लाईन और उसी लाइन में हमारा भी ऑटो.. खाली वक्त और जिंदगी से रोज मिलते रहने वाले सख्स से बात करने की उत्कंठा ने मुझे एक सवाल दागने पर मजबूर किया दिल्ली के ही हो आप या बाहर के ? “.. आटों वाले ने मेरी ओर देखा और बड़ी अजीब से मुस्कुराते हुए जवाब दिया ...है तो बाहर के पर 20 साल से यहीं है मन में ही उसकी हँसी का राज जानना चाहा तो जवाब मिला शायद मुझ जैसा हर आदमी अपना समय काटने के लिए यह सवाल पूछता होगा ....खैर इस सोच से बाहर निकलते है ही दूसरा सवाल दागा कहाँ से हो ?जवाब आया कानपुर ”… कानों को अच्छा लगा सुनकर ... मैनें भी धड़ाध़ड़ कानपुर और उससे जुड़े जिले उन्नाव के कुछ परिचित नाम बताए तो उसे अच्छा लगा और उसे मेरी बातो में अपनापन सा महसूस हुआ..तब ऑटो वाले ने मुझसे पूछा कि आप कौन सी पढाई करते हो ..तो मेरा जवाब उसके शब्द कोष से ऊपर निकल गया ..जवाब मिला भइया हम पढे नहीं है इस लिए समझ नहीं सकते कि आप क्या करते हो पर इतना बड़े स्कूल में हैं तो अच्छा ही करते होगें.. उसके जवाब में अपनी तारीफ सुन कर गुरूर यूं ही चढ गया ... अगला सवाल ऑटो वाले का था  भइया 12वी के बाद बच्चे को क्या पढाएँ ..हम भी उसे अपना मान कर सभी विकल्पों पर एक छोटा सा व्याख्यान दे बैढें ... उसने लम्बी सांस ली और बोला कि  लड़का तेज बहुत है पर अच्छे स्कूल में पढीं नहीं पाता ....पैसा भी हैय पर हम पढे़ ही नहीं है इस लिए एडमिशनवई नहीं लेते है .... अभी 8 वी में है पर... इस पर के बाद वो चुप और  उसकी इस चुप्पी पर  मेरी भी ताकत न थी कि मैं कोई और सवाल कर सकूँ... पर उसकी इस चुप्पी ने मेरे मुँह पर वह सवालों का वो गठ्ठर छोड़ गया जिसके जवाब मैं शायद खोज भी ना सकूँ ... तेज रफ्तार में आटो रायसीना मार्ग को पार करते हुए आकाशवाणी पर मुझे छोड़ आटो वाला फिर जिंदगी से लड़ने निकल पड़ा... मैं कुछ कह भी न सका... फिर एक भइया कि लाइन याद आ गई कि हारी हुई सी ही सही, लड़ाइयाँ तो हैं! “… यहीं सोच मैं आकाशवाणी की ओर बढ चला ....
 
 
                                 आकाशवाणी से संसद

Thursday 20 January 2011

बर्तन गंगा नहाने जाते है,..


नहाना हम सभी का रोज़ का काम है। लेकिन हम सब रोज़ नहाए ये जरूरी भी नहीं।सर्दियो में अक्सर लोग नही नहाते है। लेकिन ज्यादातर हम सभी दिन की शुरूआत नहाधोकर ही करते है। बोर मत होइए यह लेक्चर हमारे आपके नहाने पर नही है बल्कि यहां तो एक विशेष किस्म का नहाना है वो भी पतितपावनी गंगा में।यहां साधु संतो के स्नान की बात भी नही हो रही है जो माघ में गंगा नहाते है।यहां तो बर्तन नहा रहे है,जी हॉ बर्तन (युटेन्सिल)। क्या बकवास बात है एक पल को मुझे भी यही लगा लेकिन जब इस पूरे जुमले की संदर्भ सहित व्याख्या पता लगी तो यह सोचने पर मजबूर हो गई कि क्या वाकई बर्तन नहाते है? वो भी बाथरुम,सिंक या गुसलखाने मे नहीं गंगा मे डुबकी लगा लगा कर। इस लेख का शीर्षक भी यही है- बर्तन गंगा नहाने जाते है।प्रेजेन्ट इंडैफिनिट मे लिखा गया वाक्य और कहा गया दर्शन शास्त्र प्रवक्ता बालकृष्ण अग्निहोत्री के श्रीमुख से पत्नी मिथिलेष को। पढ़ते रहिए बर्तनों के नहाने का रहस्य बस खुलने ही वाला है।
 मिथिलेश आंटी हमारे पड़ोस मे रहती है। खूबसूरत दो बच्चों की मॉ,कुशल गृहणी और पेशे से अंग्रेजी की प्रवक्ता।लेकिन ४२ की उम्र मे एक बेटे को जन्म देने के बाद से ही हड्डियों की बीमारी हो गई जिसके चलते हाथो और पैरों की उंगलिया टेढ़ी हो गई। बावजूद इसके काम की चुस्ती फुर्ती मे कोई फर्क नही पड़ा। सर्दियों मे हालत कुछ खराब हो जाती थी।शरीर अकड़ जाता था,तब वो मेरे घर धूप सेकने आती थी। खूब बाते करती इधर उधर की,अंग्रेजी की,शेक्सपियर,मिल्टन की, न्यू मॉ़र्डन एज की और आखिर मे अपनी शादी की और आज भी गुलाबी हो जाती है।
 बालकृष्ण जी शाम को कॉलेज से आते चाय पीकर घर के बाहर ही कॉफी हाउस सा मजमा लगा देते। खूब तर्क करते मोहल्ले भर को समझाते बतियाते और ज्ञान बांटते बांटते रात के ११ बजा देतें। आंटी परेशान अग्निहोत्री जी खा ले तब वह बर्तन धोए।ऐसा नही है कि बाई नही हैं। बाई है लेकिन वह सुबह के बर्तन धोती है। करते कराते बालकृष्ण जी सा़ढ़े ग्यारह तक खाने की मेज पर आते। उसके बाद आंटी सारे बर्तन साफ करके सोती। सर्दियों की रातों में १२ बजे बर्तन धोकर सोना वाकई बड़ी बात है एक ऐसी औरत के लिए जिसकी हड्डिया ठंड में ऐठ जाती है।
 एक दिन सुबह आंटी अपने हाथों की मालिश कर रही थी। मैंने पूछ लिया जब बाई है तो आप क्यो परेशान होती है? कुछ सोचकर वह बोली शादी की पहली रात तुम्हारे अंकल ने मुझसे तीन बाते मानने के लिए कहीं। पहली-मेरे कामों मे कोई हस्तछेप मत करना। दूसरा- मेरे माता पिता की बात मानना और तीसरा रात में बर्तन जूठे मत छोड़ना।
तीसरे काम पर अचंभा हुआ कि यह कैसी अटपटी अपेछा मैने पूछा तब जवाब मिला कोई सवाल नही। फिर भी रहा ना गया मुझसे मैमे कई दफा पूछा तब झुंझलाकर बोले - बर्तन गंगा नहाने जाते है, पिता जी ने मॉ से यही कहा था और अब मैं तुमसे कह रहा हूं। मेरा दिमाग सन्न और मन सन्निपात में। यह क्या तर्क है बर्तन गंगा नहाने जाते है इसलिए इन्हे जूठा ना छोड़ा जाए। साफ करके ही रखों। लेकिन एक पल को लगा कि गंगा तो पतितपावनी है वह तो पापों को धो डालती है। 
 मेरा तो दिमाग झनझना गया कि इस कुतर्क के पीछे तर्क क्या दूं कि आखिर क्यों बर्तन आधी रात गंगा नहाने जाते है।पता लगे तो मुझे जरूर बताए।

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